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राष्ट्रका नारा भी शुद्ध न लिख सकनेवाला एकमात्र देश भारत !

www.jagran.com/blogs/jayalive
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अशोक की लाट पर अंकित वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ .इस वाक्य को किस ग्रन्थ से लिया गया है हम कुछ निशित नहीं हैं ,

ये शब्द हमारे संघीय सरकार के अशोक की लाट वाले प्रतीक अथवा मोहर के साथ प्रयुक्त हुए हैं ।

परन्तु इसे ‘संस्कृत सूक्ति रत्नाकर’ नाम की पुस्तक में पाया जाता है ,और वहां जयते के स्थान पर जयति है .
व्याकरण की द्रष्टि से जयते त्रुटी पूर्ण है ,

सामान्य ज्ञान की बात करें तो सत्यमेव जयते किस ग्रन्थ से उद्धत किया गया है ?
उत्तर : मुण्डकोपनिषद् से,किंतु वहां ‘जयते’ के स्थान पर ‘जयति’ है ।

सत्यमेव जयति नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत्सत्यस्य परमं निधानम् ।। (मुण्डकोपनिषद् 3/1/6)

‘‘सत्यमेव जयते’ भारतका घोषवाक्य है । इस वाक्यका ‘जयते’ शब्द ‘जि’ नामक धातुसे बना है । ‘जि’ नामक धातु प्रथम गणका तथा परस्मै पदपर है ।
हां, ‘परा’ तथा ‘वि’ उपसर्गों के साथ ‘जि’ धातु आत्मनेपदी रहता है और तदनुसार ‘पराजयते’ एवं ‘विजयते’ सही हैं, किंतु ‘जयते’ नहीं ।

इस कारण ‘सत्यमेव जयते’के स्थानपर ‘सत्यमेव जयति’ होना चाहिए । इस संदर्भमें अनेक संस्कृतभाषा विशेषज्ञोंने अनेक वर्षोंसे इस परिवर्तन हेतु शासनको सूचित किया है; किंतु शासनद्वारा यह परिवर्तन नहीं किया गया एवं इस सूचनाके संदर्भमें साधारण प्राप्ति भी शासनद्वारा नहीं दी गई ।

उक्त प्रेरक वाक्य में यह त्रुटि कैसे आयी और किसी संस्कृतज्ञ ने शासन का ध्यान आरंभ में उस ओर क्यों नहीं खींचा यह जानना आवश्यक होगा .

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