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दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में शिवसेना के कुछ सांसदों के र्दुव्यवहार की जो प्रतिक्रिया हुई है, वह स्वाभाविक है। सांसदों ने न सिर्फ हंगामा किया और तोड़फोड़ की, बल्कि भोजनालय के एक मुस्लिम कर्मचारी के मुंह में जबर्दस्ती रोटी ठूंस दी, जो कि रमजान में रोजे से था। महाराष्ट्र सदन के प्रबंधन से शिवसेना सांसदों को जो शिकायतें थीं, वे इतनी मामूली थीं कि उन्हें आसानी से बातचीत के जरिये हल किया जा सकता था वजह चाहे जो भी हो, सांसद का आईआरसीटीसी के कर्मचारी को रोटी खाने के लिए मजबूर करना स्वीकार्य नहीं है। यह सत्ता के नशे में चूर हो जाना है।
सांसद महोदय संसद की केंटीन में मिलने वाले खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता से नाराज़ थे. इसकी शिकायत केंटीन के मेनेजर से की जा सकती थी, लेकिन यहाँ बात “रुतबे” की थी. क्या हम एक जन-प्रतिनिधि से इस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं? एक कहावत हैं “गरीबों (कमजोर)” को हर कोई सताता है, “अमीरों (ताकतवर)” का कोई बॉल भी बांका नहीं कर सकता है. एक सांसद के सामने किसी केंटीन के करमचारी की क्या हैसियत हो सकती है, ये सांसद महोदय की हरकत ने दुनिया को बता दिया है. लेकिन मुद्दे की बात तो ये है कि केंटीन का ये कर्मचारी भी एक इंसान है और इंसानियत का कोई भी धर्म नहीं होता है.
शिव सेना सांसदों का आचरण निस्संदेह निन्दनीय है. मामला यह नहीं कि उन्होंने एक रोज़ेदार मुस्लिम युवक के मुंह में रोटी ठूँसने का प्रयास किया बरन इहाँ यह महत्वपूर्ण है कि हमारे सांसद सत्ता के मद में कितने चूर हैं जो अपने आपको कानून से ऊपर रखते हैं. किसी सामान्य व्यक्ति के मुंह में जबरन रोटी ठूंसना भी उतना ही बड़ा अपराध है. किन्तु मीडिया व कुछ तथाकथित ‘सेक्युलर’ नेताओं द्वारा इसे धार्मिक रंग देना भी एकदम अनुचित है.
केंद्र सरकार में शिवसेना प्रमुख घटक है। महाराष्ट्र में कुछ दिनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार बनाने का दावेदार है। कोई नहीं चाहेगा कि सत्ता में ऐसा संगठन रहे, जिसके नेता इतना गैर-जिम्मेदार आचरण कर सकते हैं,
शिवसेना को बने लगभग 50 साल हो गए, लेकिन ऐसा शायद ही कभी सुनने में आया कि किसी मुद्दे पर विरोध जताने के लिए उसने शांतिपूर्ण मार्च निकाला हो, धरना दिया हो या उसका कोई सदस्य भूख हड़ताल पर बैठा हो।
शिवसेना का विरोध प्रकट करने का तरीका हिंसा और तोड़फोड़ का है। अब जरूरत इस बात की है कि संसद जन-प्रतिनिधियों के लिए एक आचरण संहिता बनाए। भाजपा नेताओं को चाहिए कि वे शिवसेना को लोकतांत्रिक जिम्मेदारी और अनुशासन का तरीका समझाएं।
आप इसे लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं जहाँ देश की इस सर्वोच्च पंचायत होने का दम भरने वाली दुष्ट मंडली अपने ही देश के चंद नागरिकों के लिए इतनी असहिष्णु और आक्रामक है की जिससे एक मुस्लिम कर्मचारी का उपवास (रोज़ा) तक बर्दाश्त नहीं हुआ… ज़बरदस्ती रोटी का टुकड़ा खिला के उसे रोज़ा तोड़ने पर मजबूर किया गया , वो कहता रहा की सर मेरा रोज़ा है मैं अभी इसे नहीं खा सकता लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई…..अभी तक कोई एफ़आइआर भी इस मामले की नहीं हुई है…. ये लोकतंत्र है कि जोकतंत्र !
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